crop seasons : भारत की प्रमुख फसल ऋतुएं 2024

crop seasons : भारत की प्रमुख फसल ऋतुएं कृषि और उत्पादन के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक हैं। यहां प्रमुख फसलों में गेहूं, चावल, मक्का, कपास, दालें, गन्ना, और अनाज शामिल हैं, जो भारतीय खाद्य संस्कृति के मूल अंग हैं। इन फसलों की उत्पादन ऋतुएं देश के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न होती हैं। गेहूं, चावल, और गन्ना की उत्पादन शीत ऋतु में होती है, जबकि मक्का और दालों की खेती गर्मी की ऋतु में होती है।

कपास की खेती उत्तर भारत में गर्मी में और दक्षिण भारत में बारिश की ऋतु में होती है। अनाज जैसी फसलों की खेती भी भारत की मुख्य ऋतुओं में से होती है। ये फसलें देश की आर्थिक विकास और खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और भारतीय कृषि के संवर्धन में योगदान करती हैं।

crop seasons
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भारत में मुख्य रूप से तीन फसलें होती हैं- खरीफ, रबी और जायद। किसी समय-चक्र के अनुसार वनस्पतियों या वृक्षों और पौधों पर से इंसानों या पशुओं के उपभोग के लिए उगाकर काटी या तोड़ी जाने वाली पैदावार को फसल कहा जाता हैं। ये किसानों द्वारा उगाए जाने वाले वे पौधे या पेड़ हैं, जिनकी खेती किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर की जाती है। फसलों की पैदावार का उपयोग इंसानों और पशुओं के लिए भोजन के रुप में किया जाता है।

इसके अलावा किसान फसलों को कारोबार या व्यसाय के लिए भी उगाते हैं। भारत में मुख्य रुप से ग्रामीण इलाकों में अधिकांश लोग, कृषि व्यवसाय पर निर्भर रहते हैं, जिन्हें कृषक या आम बोलचाल की भाषा में किसान कहा जाता है।

IAS परीक्षा 2024 के दृष्टिकोण से भारतीय फसली मौसमों के बारे में महत्वपूर्ण तथ्यों को जानना बेहद आवश्यक है। इस विषय से संबंधित प्रश्न आईएएस प्रीलिम्स 2024 और मेंस परीक्षा के जीएस-I पेपर में पूछे जा सकते हैं। इस लेख में हम आपको यूपीएससी परीक्षा 2024 के संदर्भ में फसलो के मौसम, फसलों के प्रकार और कृषि के महत्व के बारे विस्तार से बता रहे हैं। 

ऋतुओं के आधार पर फसलों का वर्गीकरण

भारत में ऋतुओं के आधार पर मुख्यतः तीन प्रकार की फसलें उगाई जाती है, खरीफ की फसलें, रबी की फसलें और जायद फसलें।

खरीफ की फसलें – खरीफ की फसलें बोने के लिए अधिक तापमान व आर्द्रता की आवश्यकता होती है जबकि इनके पकते समय मौसम शुष्क होना चाहिए।  

रबी की फसलें – रबी की फसलों की बोवनी के समय अपेक्षाकृत कम तापमान की आवश्यकता होती है, वहीं इनके पकते समय अधिक तापमान व शुष्क वातावरण होना चाहिए। 

जायद फसलें – जायद फसलें तेज धूप और हवाओं को सहन कर सकती है। जायद की प्रमुख फसलें होती हैं – ककड़ी, खरबूजा आदि।

crop seasons ऋतुओं के अधार पर फसलों का वर्गीकरण

रबी ऋतु की फसलें / शीत ऋतु की फसलें – रबी की फसलों की बुआई सामान्यतः अक्टूबर और नवम्बर के महीनों में होती है और इनकी कटाई अप्रैल से मई माह तक हो जाती है। रबी ऋतु की प्रमुख फसलें – गेहूं, जौं, चना, सरसों, मटर, बरसीम, रिजका‌, हरा चारा, मसूर, आलू, राई,तम्‍बाकू, लाही, जई,  अलसी और सूरजमुखी आदि। रबी ऋतु की फसलें की बुआई के समय कम तापमान की आवश्यकता होती है, इसलिए इनकी बुआई शीत ऋतु में की जाती है। वहीं इनके पकतने के लिए शुष्‍क और गर्म वातावरण होना चाहिए।

ख‍रीफ फसलें – भारतीय उपमहाद्वीप में जून-जुलाई में बुआई की जाने वाली फसलों को खरीफ की फसलें कहा जाता है। इन फसलों की कटाई अक्टूबर और नवंबर में माह में होती है। इनको बोते समय अधिक तापमान एवं आर्द्रता तथा पकते समय शुष्क वातावरण की आवश्यकता होती है। ख‍रीफ की मुख्य फसलें – कपास, मूंगफली, धान, बाजरा, मक्‍का, शकरकन्‍द, उर्द, मूंग, मोठ लोबिया (चंवला), ज्‍वार, अरहर, ढैंचा, गन्‍ना, सोयाबीन,भिण्डी, तिल, ग्‍वार, जूट, सनई आदि। 

जायद की फसलों में शुष्क हवाएं और तेज गर्मी सहन करने की क्षमता होती हैं। इसलिए उत्तर भारत में मार्च-अप्रैल में जायद की फसलें बोई जाती हैं। इनकी कटाई जून में होती हैं। जायद की मुख्य फसलें –  तरबूज, खीरा,खरबूजा ककड़ी, मूंग, उड़द, सूरजमुखी इत्यादि।

भूमि उपयुक्तता के आधार पर फसलों का वर्गीकरण

हल्की भूमि की फसलें – कुछ फसले ऐसी होती हैं जिनके लिए हल्की भूमि की आवश्यकती होती है। इन फसलों की हल्की भूमि में अच्छी वृद्धि होती हैं। इनमें प्रमुख फसलें हैं, बाजरा, मूंगफली आदि।

मध्यम भूमि की फसलें –  सब्जियों और कुछ फलों की फसलों के लिए मध्यम भूमि की आवश्यकता होती है।  

भारी भूमि की फसलें – कपास, धान आदि फसलों की वृद्धि और उपज भारी भूमि में अच्छी होती हैं।

कृषि का महत्व

भारतीय भूगोल में भारत में कृषि एक (crop seasons) महत्वपूर्ण विषय है। भारत की करीब 49% आबादी कृषि पर निर्भर है। भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र में 141 मिलियन हेक्टेयर शुद्ध बोया गया क्षेत्र है जबकि 195 मिलियन हेक्टेयर सकल फसली क्षेत्र है।

भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान 14% है। कृषि भारत के लोगों की आय और धन के वितरण में काफी बड़ा योगदान करती है। साथ ही कृषि से लोगों को भोजन और पशुओं के लिए चारा जैसी आवश्यक वस्तुएं मिलती है। भारत में कई बड़े उद्योगों के लिए कच्चा माल का कृषि से प्राप्त होता है।\

फसलों का जीवन चक्र जीवन चक्र के आधार पर फसलों को तीन भागों में वर्गीक्रत किया गया है। एक वर्षीय फसलें – जिन फसलों का जीवन चक्र एक वर्ष में या इससे कम समय में पूर्ण हो जाता है, उन्हे एक  वर्षीय फसलें कहलाती है। एक वर्षीय प्रमुख फसलें हैं – सोयाबीन, गेहूं, जौ, धान, चना आदि। द्वि वर्षीय फसलें –  जिन फसलों का जीवन चक्र 2 साल या इससे कम समय में पूरा होता है, उन्हें द्वि वर्षीय फसलें कहा जाता है।

इनमें पहले वर्ष वानस्‍पतिक वृद्धि तथा द्वितीय वर्ष में उनमें फूल व बीज आदि का निर्माण होता हैं। प्रमुख द्वी वर्षीय फसलें हैं –  गन्‍ना, चुकन्‍दर आदि। बहु वर्षीय फसलें – जो फसलें दो या जो से अधिक वर्षों तक जीवित रहती हैं, उन्हें बहु-वर्षीय फसलें कहा जाता है। इन फसलों में जीवन चक्र में हर साल या एक वर्ष के अंतराल में फूल व फल लगते हैं। प्रमुख बहु वर्षीय फसलें हैं – नेपियर घास, लूसर्न आदि।

फसलों का उपयोग के आधार पर वर्गीकरण

कवर क्रॉप्स (Cover Crops) – कवर क्रॉप्स (crop seasons) ऐसी फसलों को कहा जाता है जो जमीन को ढंककर रखती हैं। कवर क्रॉप्स बरसात के सीजन में मिट्टी को कटाव से बचाती है। इसके अलावा ये मिट्टी की गुणवत्ता, उसकी उर्वरता,  पानी, खरपतवार, कीटों, बीमारियों, जैव विविधता और वन्य जीवों को प्रबंधित करती हैं।

कवर क्रॉप्स की बहुत तेजी से बढ़ती है, और इनकी जड़ें एक जाल की तरह मृदा में फंस जाती हैं जिससे मिट्टी का कटाव नहीं होता है।

प्रमुख कवर क्रॉप्स – शकरकंद, लोबिया, उरद, मूंगफली, पैराग्रास आदि।

समोच्च फसलें (Contour crops) – इस कृषि प्रणाली में फसलों को पंक्ति बनाकर ढलान के क्षेत्र रोपा जाता है। समोच्च फसलें भूमि तथा जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

नकदी फसलें (Cash Crops) – नकदी फसलों का उपयोग इनकी बिक्री कर तुरंत मुद्रा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।  जैसे – जूट, कपास, तम्बाकू, गन्ना चाय, कॉफी एवं रबर आदि। इन्हें व्यवसायिक फसलें या वाणिज्यिक फसलें (Commercial Crops) भी कहा जाता है।

बागानी फसलें (Plantation Crops) –भारत में बागानी फसलों के अंतर्गत कोकोआ, काजू, चाय, कॉफी, नारियल, ताड़, सुपारी एवं रबर आते हैं। इन फसलों के बड़े-बड़े बागान लगाए जाते हैं।

ट्रैप फसलें (Trap crops) – इन फसलों को उगाकर मृदाजनित हानिकारक जीव (Soil-borne) जैसे परजीवी खरपतवार या कीट-पतंग को फंसाया जाता है। इन फसलों में ओरोबेंकी (Orobanche) को सॉलेंसियस (Solanaceous) आदि के पौधे आते हैं।  

ऊर्जा फसलें (Energy Crops) – एनर्जी क्रॉप्स को उर्जा जरुरतों को पूरा करने के लिए उगाया जाता है। भारत की प्रमुख उर्जा फसलें हैं – इथेनॉल, गन्ना (एल्कोहॉल प्राप्त करने के लिए), आलू, मक्का, टपियोका, जटरोफा आदि।

आपातकालीन फसलें (Emergency Crops) – आपातकालीन फसलें तब लगाई जाती है जब किसी प्राकृतिक आपदा के कारण मुख्य फसलें खराब हो जाती है। ये ऐसी फसलें होती जिनकों उगाकर आगामी ऋतु में फिर से सामान्य फसलें उगाई जा सकती है। ये अल्प अवधि की फसलें होती हैं, जो तेजी से बढ़ती है।

प्रमुख आपातकालिन फसलें (crop seasons)– प्याज, मूली, मूंग, उड़द, लोबिया आदि।

बार्डर या बैरियर क्रॉप्स (Border/Barrier Crops) – बॉर्डर या बैरियर क्रॉप्स को खेत के चारों और लगाया जाता है। इन फसलों को मुख्य फसलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए लगाया जाता है। यें फसलें सामान्यतः खेत की मेढ़ पर लगाई जाती है, जिससे हवा की गति कम हो जाती है और इनमें लगे कांटे दूसरी जानवरों को फसलों तक जाने से रोकते हैं।

उदाहरण – चने की फसल की सुरक्षा के लिए खेत के चारों ओर कुसुम की फसलें उगाई जाती है। 

कीट को आकर्षित करने वाली फसलें – इन फसलों को मुख्य फसल को कीट पतंगों और खरपतवारों से बचाने के लिए लगाया जाता है। कीट को आकर्षित करने वाली फसलों को सामान्यतः मुख्य फसलों के चारों ओर लगाया जाता है। उदाहरण – कपास की फसल को कीट पतंगो से बचाने के लिए उसके चारों ओर भिण्डी की फसल उगाई जाती हैं।

हरी खाद देने वाली फसलें – इन फसलों का उपयोग भूमि को हरी खाद देने के लिए उगाया जाता है। हरी खाद देने वाली प्रमुख फसलें हैं – सनई, ढैंचा आदि।

भूमि संरक्षण करने वाली फसलें – इन फसलों का रोपण भूमि के कटाव को रोकने के लिए किया जाता है। इनकी जड़ें अपने अंदर मिट्टी को फंसा लेती है और उसे बरसात के पानी में बहने से बचाती है। भूमि संरक्षण करने वाली प्रमुख फसलें हैं – मूंगफली, मूंग आदि।

अन्तवर्ती (अल्पकालिक) फसलें – ये फसलें दो फसलों के बीच के समय का सद्उपयोग करने के लिए लगाई जाती है। इस समय में अल्पकालिक फसल लगाई जाती है जैसे- उर्द, मूंग आदि।

सूचक फसलें – सूचक फसलें मिट्टी में पोषक पदार्थो कमी होने पर अपने ऊपर कमी के लक्षण दिखाने लग जाती है। इन फसलों को मिट्टी के पौषक तत्वों की पहचान करे के लिए लगाया जाता है। प्रमुख सूचक फसलें हैं – फूलगोभी, मक्का आदि।

प्रकाश की अवधि के आधार पर फसलों का वर्गीकरण

कम अवधि के लिए प्रकाश चाहने वाली फसलें – कुछ पौधे, फूल तथा फल कम अवधि के लिए सूर्य की रोशनी चाहते हैं। इनके फूल और फल बनने और अच्छी वृद्धी के लिए कम समय तक रौशनी की आवश्यकता होती है, इसलिए इन्हें छोटे दिनों में उगाया जाता है। कम अवधि के लिए प्रकाश चाहने वाली फसलें हैं – सोयाबीन, ज्वार, बाजरा आदि।

अधिक अवधि का प्रकाश चाहने वाली फसलें – इन फसलों को दिन में अधिक समय तक प्रकाश की आवश्यकता होती हैं। इसलिए इनको बड़े दिनों में उगाया जाता है ताकि इनमें फूल और फलने की क्रिया ठीक से हो पाए। अधिक अवधि का प्रकाश चाहने वाली फसलें – बरसीम, जौ, मटर आदि।

प्रकाश निरप्रभावी फसलें –  इन फसलों पर प्रकाश की अवधि का प्रभाव नहीं पड़ता हैं। इन फसलों की छोटे और बडे दोनो दिनों में अच्छी वृद्धि होती है। प्रकाश निरप्रभावी पौधे – टमाटर ।

आर्थिक आधार पर फसलों का वर्गीकरण नीचे फसलों को आर्थिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर वर्गीकृत किया गया हैं – चारे की फसलें – वरसीम, ग्वार, लोबिया आदि।रेशे वाली फसलें – जूट, सनई, कपास आदि।तिलहनी फसलें – मूगंफली, सरसों, सोयाबीन आदि।औषधि फसलें – पुदीना, चायपत्ती आदि।जड़ वाली फसलें – आलू, रतालू, मूली, गाजर आदि।

चीनी देने वाली फसलें – गन्ना, चुकन्दर आदि।मसाले वाली फसलें – लहसुन, प्याज, अदरक, मिर्च, काली मिर्च, दालचीनी आदि।अनाज की फसलें – गेहूं, जौ, धान आदि।मोटे अनाज की फसलें – ज्वार, बाजरा और मक्का आदि।अन्य मोटे अनाज – काकून, रागी, सोवा, चना आदि।दलहनी फसलें – अरहर, चना, मूगं, मटर आदि।

भारत में फसल ऋतु के बारे में पूछे जाने वाले प्रश्न

भारत में मुख्य क्रोप्पिंग सीजन कौन से हैं?

भारत में खरीफ, रबी और जायद तीन अलग-अलग फसल मौसम सीजन होते हैं। खरीफ का मौसम दक्षिण पश्चिम मानसून के साथ शुरू होता है, जिसके तहत चावल, कपास, जूट, ज्वार, बाजरा और तूर जैसी उष्णकटिबंधीय फसलों की खेती की जाती है।

भारत की प्रमुख खाद्य फसल कौन सी है ?

भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख खाद्य फसलें, गेहूं, चावल, बाजरा, दालें, चाय, कॉफी, गन्ना, तिलहन, दलहन आदि है। नहर सिंचाई और नलकूपों की वृद्धि से अब पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ कम वर्षा वाले इलाकों में भी चावल आदि फसलें उगाना संभव हो गया है।

देश की विशाल और विविध जलवायु और मिट्टी की स्थिति विभिन्न प्रकार की फसलों के लिए उपयुक्त वातवरण बनाती है। भारत में सभी उष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण फसलें उगाई जाती हैं। भारत में कुल फसली क्षेत्र के 2/3 भाग में खाद्य फसलों की खेती की जाती है।

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